मालभोग केला - प्राइड ऑफ बिहार 
मालभोग केला - प्राइड ऑफ बिहार 

मालभोग केला - प्राइड ऑफ बिहार 

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसंधान
विभागाध्यक्ष
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट
ऑफ प्लांट पैथोलॉजी
डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर बिहार

भारत में लगभग 500 किस्में उगायी जाती हैं लेकिन एक ही किस्म का विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम है। डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पास केला की 74 से ज्यादा प्रजातियाँ  संग्रहित हैं। केला का पौधा बिना शाखाओं वाला कोमल तना से निर्मित होता है, जिसकी ऊचाई 1.8 मी0 से लेकर 6 मी0 तक होता है। इसके तना को झूठा तना या आभासी तना कहते हैं क्योंकि यह पत्तियों के नीचले हिस्से के संग्रहण से बनता है। असली तना जमीन के नीचे होता है जिसे प्रकन्द कहते हैं। इसके मध्यवर्ती भाग से पुष्पक्रम निकलता है।

भारत में केला विभिन्न परिस्थितियों एवं उत्पादन पद्धति में उगाया जाता है, इसलिए बड़ी संख्या में केला की प्रजातियाँ, विभिन्न आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों की पूर्ति कर रही हैं क्षेत्र विशेष  के अनुसार लगभग 20 प्रजातियाँ वाणिज्यिक उदेश्य से उगाई जा रही हैं। इस लेख में मैं आपको सिल्क समूह के मशहूर केला मालभोग के संबंध में बताना चाह रहा हूं।

यह केला सिल्क (एएबी) समूह का एक सदस्य है ,इसमें मालभोग, रसथली, मोर्तमान, रासाबाले, पूवन (केरल) एवे अमृतपानी, आदि प्रजातियों के केला आते है। यह बिहार एवं बंगाल की एक मुख्य किस्म है जिसका अपने  विशिष्ट स्वाद एवं सुगन्ध की वजह से विश्व में एक प्रमुख स्थान है। यह अधिक वर्षा को सहन कर सकती है। इसका पौधा लम्बा, फल औसत आकार का बड़ा, छाल पतली  तथा पकने पर कुछ सुनहला पीलापन लिए हुए हो जाती है। घौंद के 6-7 हथ्थों के फल की छिमियाँ पुष्ट होती है। घौंद के हथ्थे 300 के कोण पर आभासी तना से दिखते हैं। फल धीरे-धीरे पकते है तथा गुद्दा कड़ा ही रहता है। फलों के घौंद का वजन 10-20 किलोग्राम फल की संख्या लगभग 120 के आस पास होती है। बिहार में यह प्रजाति पानामा विल्ट की वजह से लुप्त होने के कगार पर है। फल पकने पर डंठल से गिर जाता है। इसमें फलों के फटने की समस्या भी अक्सर देखी जाती है। मालभोग केला को प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है, जहां ड्वार्फ केवेंडिश समूह के केला 50 से 60 रुपया दर्जन बिकता है वही मालभोग केला 150 से 200 रुपया दर्जन बिकता है।आज के तारीख में बिहार में  मालभोग प्रजाति के केले वैशाली एवं हाजीपुर के आसपास के  मात्र 15 से 20 गावों में सिमट कर रह गया है इसकी मुख्य वजह इसमें लगने वाली एक प्रमुख बीमारी जिसका नाम है फ्यूजेरियम विल्ट जिसका रोगकारक है फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ एसपी क्यूबेंस रेस 1 है। इस प्रजाति को लुप्त होने से बचाने के लिए उत्तक संवर्धन से तैयार केला के पौधों को लगाना एक प्रमुख उपाय है।

इस क्रम में डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ने प्रोएक्टिव कदम उठाते हुए केला अनुसंधान केंद्र, गोरौल में एक उत्तक संवर्धन प्रयोगशाला की स्थापना किया है जिसका प्रमुख उद्देश्य है की मालभोग प्रजाति के केले के उत्तक संवर्धन से तैयार पौधे किए जाय। इसका सार्थक परिणाम बहुत जल्दी मिलने लगेगा।